लेखनी प्रतियोगिता -23-Mar-2022
'मिट्टी के घर की कहानी'
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बीती गुजरी कुछ समय पुरानी
बात है यह उस मिट्टी के घर की
बसती थी जिसमें प्रेम की बाणी
माना कुछ गँवारपन से लिपटी
कुछ कुछ भोलेपन से होकर
कच्चे घर में प्यार से थी सिमटी
उस घास-पूस के छप्पर में
था विस्तार धरा का थोड़ा
सुविधाएँ भी कुछ संकीर्ण रही
पर हृदय के विस्तृत विस्तार ने
प्यार की मिट्टी से था घर जोड़ा
फर्श भी मिट्टी का लिपा था कच्चा
कुछ सुन्दरता देने को रंग चढ़ा
पर लेकर मन की सुन्दरता और रंग
प्रेम-भाव से था सुदृढ़ गढ़ा पक्का
आंगन भी था कुछ सिकुड़ा छोटा
बच्चों की उछल-कूद से धूसर धूल भरा
अतिथि के अ-तिथि आने पर
खुशी से फूल के विस्तृत धरा-सा मोटा
हाँ रोशन नहीं था रात के अन्धयारों में
अन्धों के जैसे स्पर्श रहा कच्ची दीवारों में
पर फिर भी मन रोशन थे उस मिट्टी के घर
निर्मल संतोष से निर्मित बिजली के तारों में
आंधी-तूफानों से था कुछ जर्जर
हाँ माना कि मजबूत नहीं थे उसके छप्पर
पर रिश्तों के बंधन से घुल-मिलकर
मजबूत रहा, काँपा नहीं था थर-थर
घर था कच्चा और चूल्हा भी था कच्चा
कम था पकाने को, भरपेट नहीं था खाने को
पर जब भी कोई खाली पेट की झोली फैलाता
कम में भी मिलता उसको खाना पक्का
हाँ सुघढ़ नहीं था मिट्टी का वह बेढ़गा घर
जैसा दिखता था वैसा विद्यमान था पर
निश्चल थी प्रतिमाएँ उसकी निश्छल
थी नहीं बैर, द्वेष, अति-अभिलाषाओं से तर-भर
थी यह गुजरी बीती विस्मृत कथा पुरानी
मिट्टी से निर्मित मिट्टी के महक की बाणी
झेल गये थे वे भीषण काल अन्तराल को
पर झेल न पाये आधुनिकता की नूतन नूरानी
अब जीर्ण-शीर्ण बिखरे अवशेष है उसके
जैसे उजड़ गई कोई सभ्यता हो बरसों पुरानी।
Renu
24-Mar-2022 09:46 PM
बहुत खूब
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Anil Kumar
27-Mar-2022 07:03 AM
धन्यवाद
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